সখি কি পুছসি অনুভব মোয় Sakhi Ki Puchasi Anubhaba Moi सखि कि पुछसि अनुभव मोय

সখি কি পুছসি অনুভব মোয়
Sakhi Ki Puchasi Anubhaba Moi
सखि कि पुछसि अनुभव मोय
পদাবলী কীর্তন
পদকর্তা: বিদ্যাপতি ঠাকুর
কণ্ঠ: শারদা সিনহা

 

সখি কি পুছসি অনুভব মোয়


[সখি কি পুছসি অনুভব মোয়]-২
সেহো পিরিতি অনুরাগ বাখানইত
তিলে তিলে নূতন হোয়
সখি কি পুছসি অনুভব মোয়।
জনম অবধি হম রূপ নিহারল
নয়ন ন তিরপিত ভেল।
সেহো মধুর বোল শ্রবণহি শুনল
শ্রুতিপথে পরশ ন গেল।
সখি কি পুছসি অনুভব মোয়।
কত মধু-যামিনি রভসে গমাওল
ন বুঝল কৈসন কেল,
লাখ লাখ যুগ হিয় হিয় রাখল
তইও হিয়া জুড়ন ন গেল।
সখি কি পুছসি অনুভব মোয়।
কত বিদগ্ধ জন রস অনুমগন
অনুভব কাহু না পেখ!
বিদ্যাপতি কহ প্রাণ জুড়াইত
লাখে ন মিলল এক।
[সখি কি পুছসি অনুভব মোয়]-২
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सखि कि पुछसि अनुभव मोय


[सखि कि पुछसि अनुभव मोय]-x२
सेहो पिरिति अनुराग बखानइत
तिले तिले नूतन होय
सखि कि पुछसि अनुभव मोय
जनम अबधि हम रूप निहारल
नयन न तिरपित भेल
सेहो मधुर बोल स्रवनहि सूनल
श्रुति पथे परश न गेल
सखि कि पुछसि अनुभव मोय
कत मधु यामिनी रभसे गमाओल,
न बुझल कइसन केल
लाख लाख युग हिये हिये राखल,
तइओ हिय जुड़न न गेल
सखि कि पुछसि अनुभव मोय
कत बिदग्ध जन रस अनुमगन
अनुभव काहु न पेख
विद्यापति कह प्राण जुड़ाइत
लाखे न मिलल एक
[सखि कि पुछसि अनुभव मोय]-x२

 

Sakhi Ki Puchasi Anubhaba Moi

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