Dil Pe Zakham Lyrics | Jubin Nautiyal | दिल पे जख्म खाते हैं

Dil Pe Zakham Lyrics | Jubin Nautiyal

 दिल पे जख्म खाते हैं – Nusrat Fateh Ali Khan

 दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं

जान से गुजरते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं

जुर्म सिर्फ इतना है

जुर्म सिर्फ इतना है उनको प्यार करते हैं

जुर्म सिर्फ इतना है उनको प्यार करते हैं

जुर्म सिर्फ इतना है

जुर्म सिर्फ इतना है उनको प्यार करते हैं

ऐतबार बढ़ता है और भी मुहब्बत का

ऐतबार बढ़ता है और भी मुहब्बत का

जब वो अजनबी बनकर

जब वो अजनबी बनकर पास से गुजरते हैं

जब वो अजनबी बनकर पास से गुजरते हैं

जब वो अजनबी बनकर

जब वो अजनबी बनकर पास से गुजरते हैं

जब वो अजनबी बनकर पास से गुजरते हैं

उनकी अंजुमन भी है, दार भी रसन भी है

उनकी अंजुमन भी है, दार भी रसन भी है

देखना है दीवाने

देखना है दीवाने अब कहाँ ठहरते हैं

देखना है दीवाने अब कहाँ ठहरते हैं

देखना है दीवाने अब कहाँ ठहरते हैं, ठहरते हैं, ठहरते हैं

देखना है दीवाने अब कहाँ ठहरते हैं

देखना है दीवाने अब कहाँ ठहरते हैं

उनका इक तगाफुल से टूटते हैं दिल कितने

उनके इक तगाफुल से टूटते हैं दिल कितने

उनका इक तगाफुल से टूटते हैं दिल कितने

उनकी इक तवज्जो से

उनकी इक तवज्जो से कितने जख्म भरते हैं

उनकी इक तवज्जो से कितने जख्म भरते हैं

उनकी इक तवज्जो से

उनकी इक तवज्जो से कितने जख्म भरते हैं

उनकी इक तवज्जो से कितने जख्म भरते हैं

जो पले हैं गुरमत में क्या सहर को पहचानें

जो पले हैं गुरमत में क्या सहर को पहचानें

तीरगी के शैदाई

तीरगी के शैदाई रोशनी से डरते हैं

तीरगी के शैदाई रोशनी से डरते हैं

लाख वो गुरेजां हों, लाख दुश्मन-ए-जां हों

लाख वो गुरेजां हों, लाख वो गुरेजां हों

दिल को क्या करें साहिब

दिल को क्या करें साहिब हम उन्ही पे मरते हैं

दिल को क्या करें साहिब हम उन्ही पे मरते हैं

दिल को क्या करें साहिब हम उन्ही पे मरते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं

दिल पे जख्म खाते हैं…
Dil Pe Zakham Lyrics | Jubin Nautiyal
Hasta Hua Yeh Chehra
Bas Nazar Ka Dokha Hai
Tumko Kya Khabar Kaise
Aansuon Ko Roka Hai

Ho Tumko Kya Khabar Kitna
Main Raat Se Darta Hoon
Sau Dard Jaag Uthte Hain
Jab Zamana Sota Hai

Haan Tumpe Ungaliyan Na Uthe
Isliye Gham Uthate Hain
Dil Pe Zakhm Khate Hain

Dil Pe Zakhm Khate Hain
Aur Muskurate Hain
Dil Pe Zakhm Khate Hain
Aur Muskurate Hain

Kya Bataye Seene Mein
Kis Qadar Dararein Hain
Hum Woh Hai Jo Sheeshon Ko
Tootna Sikhate Hain
Dil Pe Zakhm Khate Hain

Log Humse Kehte Hain
Laal Kyun Hai Yeh Aankhein
Kuchh Nasha Kiya Hai Ya
Raat Soye The Kuchh Kam

Haan Log Humse Kehte Hain
Laal Kyun Hai Yeh Aankhein
Kuchh Nasha Kiya Hai Ya
Raat Soye The Kuchh Kam

Kya Bataye Logon Ko
Kaun Hai Jo Samjhega
Raat Rone Ka Dil Tha
Phir Bhi Ro Na Paye Hum

Dastake Nahi Dete
Hum Kabhi Tere Dar Pe

Teri Galiyon Se Hum
Yun Hi Laut Aate Hain
Dil Pe Zakham Khate Hain

Kuchh Samajh Na Aaye
Kuchh Samajh Na Aaye
Hum Chain Kaise Paye
Baarishein Jo Sath Mein Guzri
Bhool Kaise Jaayein

Kaise Chhod De Aakhir
Tujhko Yaad Karna
Tu Jiye Teri Khatir
Ab Hai Kabool Marna

Tere Khat Jala Na Sake
Isliye Dil Jalate Hain

Dil Pe Zakhm Khate Hain
Aur Muskurate Hain
Hum Woh Hai Jo Sheeshon Ko
Tootna Sikhate Hain

Dil Pe Zakhm Khate Hain
Aur Muskurate Hain
Dil Pe Zakhm Khate Hain



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